Dangers of Yakshini sadhna in Hindi : यक्षिणी साधना के खतरे आपकी सोच से कही ज्यादा है.
अगर आप यक्षिणी साधना सिद्धि के बारे में सोच रहे है तो पहले इससे जुड़ी आधारभूत जानकारी और छिपे हुए खतरे के बारे में जान लीजिये.
आज के युग में सात्विक साधना की बजाय भौतिक सुख प्रदान करने वाली साधनाओ पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है.
ऐसे कई ऑनलाइन ग्रुप और ऑफलाइन संस्था है जहाँ कुछ साधक आपको भौतिक सुख प्रदान करने वाली यक्षिणी और अप्सरा साधना की सिद्धि के बारे में बताते है.
क्या यक्षिणी साधना या अप्सरा साधना करना खतरनाक है? यक्षिणी साधना के खतरे और इससे जुड़ी किन किन सावधानियो को ध्यान में रखते हुए साधना संपन्न करनी चाहिए.
ये सवाल इसलिए उठता है क्यों की हर साधना का एक नियम है आप जिस तरह की साधना करते है आपकी गति ( मौत ) उसी के अनुसार होती है.
जो साधक कर्ण पिशाचनी साधना करते है उनकी गति के बाद पिशाचनी उन्हें अपने लोक में ले जाती है.
यक्षिणी और अप्सरा साधना करने वाले साधक की गति भी उनके लोक में होती है ऐसे में आपके लिए यक्षिणी साधना के खतरे ( Dangers of Yakshini sadhna ) के बारे में जान लेना बेहद जरुरी बन जाता है.
आजकल के आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायी बनाने के लिए भर भर के ऐसी साधना देते है जो बेहद कम समय में आपको अमीर बना सकती है, आपकी भौतिक और आर्थिक तंगी को दूर कर सकती है लेकिन, किस कीमत पर ?
निचले लोक की शक्तियों की पूजा करने का सबसे बड़ा नुकसान यही है की ये साधक की आध्यात्मिक उर्जा का भक्षण करती है और उनकी मौत के बाद उन्हें अपने साथ ले जाती है.
ऐसी स्थिति में आपको अप्सरा और यक्षिणी साधना के खतरे के बारे में जान लेना चाहिए और उसके बाद तय करना चाहिए की आपके लिए ये साधना करना अब भी जरुरी है या नहीं.
अप्सरा और यक्षिणी साधना करने की सबसे बड़ी वजह
आज के युग में आर्थिक तंगी सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. अगर कोई आर्थिक हालात से परेशान है तो वो चाहता है की किसी ऐसी साधना को सिद्ध कर लिया जाए जो उसकी Financial Problems को दूर कर दे.
अप्सरा और यक्षिणी का यौवन भी साधक को आकर्षित करता है और भौतिक सुख की लालसा की वजह से वो अप्सरा या यक्षिणी साधना करना शुरू कर देते है. लेकिन आपको अप्सरा और यक्षिणी साधना के खतरे के बारे में भी पता होना चाहिए.
ये बात सच है की सात्विक और आध्यात्मिक साधनाओ की तुलना में इस तरह की अप्सरा और यक्षिणी साधना की सिद्धि करना बेहद आसान है मगर, एक समय बीत जाने के बाद साधक खुद इनसे छुटकारा पाना चाहता है.
अगर आपका मकसद भौतिक सुख सुविधा और भोग की है तो जल्दी ही आप इन सबसे उब जाते है वही आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने वाले साधक के लिए इस तरह की साधना का अभ्यास करना फायदेमंद है.
अप्सरा और यक्षिणी साधना के खतरे
अप्सरा या यक्षिणी साधक का मनोबल मजबूत होना चाहिए और इसके साथ ही उसकी आध्यात्मिक उर्जा का स्तर भी उच्च होना चाहिए.
कोई भी साधना कर रहे है तो आपको 2 बातो का ध्यान रखना होता है.
- क्या आपका बॉडी और माइंड उस साधना के लिए तैयार है.
- आपके अन्दर की उर्जा का स्तर उस साधना के लिए पर्याप्त है या नहीं.
साधना में असफलता की सबसे बड़ी वजह यही 2 कारण है. साधक के अन्दर उर्जा की कमी होती है जिसकी वजह से जल्दी ही उनका मन साधना से उचट जाता है.
आमतौर पर 2 सबसे बड़े यक्षिणी साधना के खतरे है जो आपको साधना के दौरान या बाद में देखने को मिल सकते है.
- आपकी आध्यात्मिक उर्जा का भक्षण क्यों की निचले लोक की जितनी भी शक्तियां है उन्हें शक्ति साधक की आध्यात्मिक उर्जा से मिलती है. इसके लिए वे साधक की भक्ति और भोग का रास्ता चुनती है. साधना के दौरान आपका उनके साथ किया गया समझौता / पैक्ट इसके माध्यम को तय करता है. ये यक्षिणी साधना के खतरे में सबसे बड़ी रिस्क में से एक है.
- आपकी गति के बाद क्या होगा ? मौत के बाद साधक की गति नहीं होती है और यक्षिणी उन्हें अपने लोक में ले जाती है.
ये ऐसे संभावित यक्षिणी साधना के खतरे है जिसके लिए हर उस साधक को तैयार रहना चाहिए जो अप्सरा या यक्षिणी साधना करने के बारे में सोच रहा है.
अगर आपके गुरु सही मार्ग पर ले जाने वाले है तो समय रहते वे इस खतरे का समाधान भी करते है.
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यक्षिणी साधना में क्या सावधानी रखनी चाहिए ?
यक्षिणी के 36 प्रकार होते है और उनके वर देने का तरीका अलग है. साधक किसी भी यक्षिणी को माता, बहन या फिर पत्नी के स्वरूप में वरण कर सकते है.
अगर आप यक्षिणी साधना के खतरे नहीं उठाना चाहते है तो आपको पहले खुद को इसके लिए रेडी करना होगा.
यक्षिणी साधना से पहले साधक को खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर इसकी तैयारी करनी होती है जो की यक्षिणी साधना से भी ज्यादा मुश्किल होती है.
यक्षिणी साधना से पहले चान्द्रायण व्रत किया जाता है. इस व्रत में प्रतिपदा को 1 कौर भोजन, दूज को 2 कौर इस प्रकार 1-1 कौर भोजन पूर्णिमा तक करके पूर्णिमा के बाद 1-1 कौर कम करते हुए व्रत किया जाता है.
इसमें 1 कौर भोजन के अलावा कुछ नहीं लिया जाता है. इससे कई जन्मों के पाप कट जाते हैं.
पश्चात 16 रुद्राभिषेक किए जाते हैं, साथ में महामृत्युंजय 51 हजार तथा कुबेर यंत्र 51 हजार कर भगवान भूतनाथ शिवजी से आज्ञा ली जाती है.
यक्षिणी साधना से पहले ब्रह्मचर्य और हवन कौशल की परीक्षा होती है. यंत्र निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उसके बाद इस सिद्ध यंत्र के जरिये यक्षिणी की साधना की जाती है.
इसके बाद पूर्णिमा की रात में लम्बा साधना अभ्यास होता है जिसके बाद साधक यक्षिणी साधना के लिए तैयार होता है.
यक्षिणी साधना के खतरे और असफलता का रिस्क नहीं उठाना चाहते है तो साधना के दौरान भौतिक सुख के साधन से दूरी बना लेनी चाहिए और किसी की भी आलोचना करने से बचना चाहिए.
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FAQ
यक्षिणी साधना क्या दे सकती है ?
यक्षिणी साधना करने वाले साधक को कई फायदे मिलते है जैसे की
राज सुख के लिये विशेष प्रभावी
ज्ञात अज्ञात बताने वाली यक्षिणी सिद्धि
धन, यौवन, आरोग्य, समृद्धि, सुख प्राप्ति
देव संपर्क की क्षमताओं की स्थापना
सुंदरी नाम की यक्षिणी को सबसे शक्तिशाली यक्षिणी माना जाता है जो साधक को ब्रह्माण्ड का हर सुख देने में सक्षम है.
यक्षिणी साधना करने से क्या होता है ?
यक्षिणी साधना करने से साधक को भौतिक और अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है. अनुरागिणी यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है.
यक्षिणी के पास कौन सी शक्तियां हैं ?
ऐसा माना जाता है कि यक्षिणी के पास जादुई शक्तियां होती हैं जो उन्हें प्राकृतिक दुनिया को नियंत्रित करने और उसमें हेरफेर करने की अनुमति देती हैं. ज्यादातर वे प्राकृतिक जगहों पर ही विचरण करती है.
वे प्रकृति से जुड़ी हैं, और माना जाता है कि उनमें मौसम, पौधों की वृद्धि और यहां तक कि जल निकायों की गति को प्रभावित करने की क्षमता होती है.
यक्षिणी को कौन सा श्राप मिला था ?
यक्ष और यक्षिणी दूसरे लोक से है और ऐसे में उनके लिए किसी बाहरी दुनिया के व्यक्ति से नाता रखना निषेद्ध था.
यक्ष लोक की यक्षिणी धरती पर आगमन के दौरान एक पुरुष के प्यार में पड़ जाती है जिसके बाद उसे पुरुष वियोग का श्राप मिलता है और यक्ष लोक से निष्कासित किया जाता है.
उसे श्राप मिला था की जिस पुरुष से प्यार में पड़कर उसने यक्ष लोक की मर्यादा का उल्लंघन किया है उसे धरती पर रहते हुए पुरुषो के साथ वासनात्मक रिश्ता रखना होगा.
श्राप की मुक्ति सिर्फ एक स्थिति में संभव थी जब कोई पुरुष उसके यौवन से प्रभावित हुए बगैर उससे सच्चा प्यार करे.
क्या यक्षिणी की कहानी सच है?
यक्षिणी के श्राप की कहानी सच है या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन, आप इससे जुड़े पॉडकास्ट और कहानियां पढ़ सकते है. यक्षिणी को धरती पर रहने का श्राप मिलता है क्यों की वे यक्ष लोक की मर्यादा के विपरीत धरती के नश्वर प्राणी के मोह में पड़ जाती है.
क्या यक्षिणी साधना के खतरे से बचा जा सकता है ?
अगर आप यक्षिणी साधना के खतरे से बचते हुए साधना को संपन्न करना चाहते है तो आपको साधना से जुड़ी जानकारी और सिद्ध करने का सही तरीका पता होना चाहिए. सही गुरु का चयन करना आपको कई मुसीबतों से निकाल सकता है.
गुरु का चयन करते वक़्त ध्यान दे की वो आपको आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता दिखा रहे है या फिर भौतिक सुविधा का.